चेरी का बगीचा

“मेरे पास कोई पासपोर्ट नहीं है न, इसलिए मुझे अपनी असली उम्र का ही पता नहीं। मुझे तो हरदम यही लगता है। जैसे बच्ची ही होऊँ । बचपन में मेरे माँ-बाप यहाँ से वहाँ मेलों में घूमा करते थे और अच्छे-अच्छे तमाशे दिखाया करते थे। मैं साल्टो मार्टेल का नाच और तरह-तरह की कलाबाज़ियाँ दिखाया करती थी। जब माँ-बाप मर गए तो एक जर्मन बूढ़ी ने मुझे गोद ले लिया, पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया। इस तरह बड़ी होकर मैं आज गवर्नेस बनी। लेकिन मैं कहाँ से आई हूँ, कौन हूँ- मुझे कुछ भी नहीं मालूम… । मेरे माँ-बाप कौन थे? हो सकता है, उन लोगों ने आपस में शादी-वादी भी न की हो… (अपनी जेब से एक खीरा निकालकर कचर- कचर खाती है।…कुछ देर चुप रहकर) मेरा मन बातें करने को ललकता रहता है; लेकिन कोई भी तो ऐसा नहीं है जिससे बातें करूँ, न कोई दोस्त, न सम्बन्धी…।”
एंतोन चेखव ने इस एक नाटक में जिस विराट ऐतिहासिक सचाई को पकड़ा है, वह शायद बहुत बड़े उपन्यास का विषय था। इसी सचाई के रेशों से बुना चेरी का बगीचा समूचे देश का प्रतीक बन उठा है।
चेरी के बगीचे की मालकिन श्रीमती रैनिव्स्काया अपने आपमें ही डूबी है। आशा, निराशा, सुख-दुख की यह निजी दुनिया बाहरी दबावों में और भी सिकुड़ती चली जाती है, लेकिन इस क़ैद से छूटकर बाहर आया एक छोटे-से दुकानदार का बेटा लोपाखिन समय को पहचानता है। औद्योगिक संस्कृति के उदय का यह नया-नया सम्पन्न व्यवसायी व्यक्ति, क्रूर और सख़्त हाथों से नया समाज बना रहा है।
इस सन्दर्भ में अनुवादक राजेन्द्र यादव का कथन है : “चेखव की रचनाओं की आत्मीयता, करुणा और ख़ास क़िस्म की निराश उदासी (लगभग आत्मदया जैसी) मुझे बहुत छूती है। मैं उसके प्रभाव से लगभग मोहाच्छन्न था। उसी श्रद्धा से मैंने इन नाटकों को हाथ लगाया था। रूसी भाषा नहीं जानता था, मगर अधिक से अधिक ईमानदारी से उसके नाटकों की मौलिक शक्ति तक पहुँचना चाहता था। इसलिए तीन अंग्रेज़ी अनुवादों को सामने रखकर एक-एक वाक्य पढ़ता और मूल को पकड़ने की कोशिश करता। आधार बनाया मॉस्को के अनुवाद को। बाद में सुना, अनुवादों को पाठकों ने पसन्द किया, अनेक रंग-संस्थानों और रेडियो इत्यादि ने इन्हें अपनाया, पाठ्यक्रम में भी उन्हें लिया गया।”
 

कवि परिचय

       एंतोन चेखव
दुनिया के मशहूर लेखकों में शामिल रूसी नाटककार- कहानीकार एंतोन चेखव पेशे से डॉक्टर थे। उनका जन्म 17 जनवरी, 1860 को तागनरोग, रूस में हुआ। । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं— ‘द सीगल’, ‘थ्री सिस्टर्स’, ‘द चेरी ऑरकार्ड’, ‘अंकल वान्या’, ‘वार्ड नंबर 6’, ‘द डेथ ऑफ़ ए क्लर्क’ ‘द लेडी विद द डॉग’ आदि। 2 जुलाई, 1904 को उनका निधन हुआ ।
         राजेन्द्र यादव
राजेन्द्र यादव का जन्म 28 अगस्त, 1929 को आगरा में हुआ। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी) किया। उन्होंने विभिन्न विधाओं में लेखन किया जिनमें प्रमुख हैं— उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं-‘जहाँ लक्ष्मी कैद है’, ‘छोटे-छोटे ताजमहल’, ‘अनदेखे अनजाने पुल’, (कहानी- संग्रह); ‘सारा आकाश’, ‘उखड़े हुए लोग’, ‘एक इंच मुस्कान’ (मन्नू भंडारी के साथ) (उपन्यास); ‘एक दुनिया : समानान्तर’, ‘कथा जगत की बाग़ी मुस्लिम औरतें’, ‘वक़्त है एक ब्रेक का’(सम्पादन); ‘औरों के बहाने’ (व्यक्ति-चित्र); ‘मुड़-मुड़के देखता हूँ…’ (आत्मकथा); ‘राजेन्द्र यादव रचनावली’ (15 खंड)। अगस्त, 1986 से 27 अक्टूबर, 2013 तक प्रेमचन्द द्वारा स्थापित कथा-मासिक ‘हंस’ का सम्पादन । चेखव, तुर्गनेव, कामू आदि लेखकों की कई कालजयी कृतियों का अनुवाद।
28 अक्टूबर, 2013 को उनका देहावसान हुआ।
AProDoएंतोन चेखव ने इस एक नाटक में जिस विराट ऐतिहासिक सचाई को पकड़ा है, वह शायद बहुत बड़े उपन्यास का विषय था। इसी सचाई के रेशों से बुना चेरी का बगीचा समूचे देश का प्रतीक बन उठा है।
चेरी के बगीचे की मालकिन श्रीमती रैनिव्स्काया अपने आपमें ही डूबी है। आशा, निराशा, सुख-दुख की यह निजी दुनिया बाहरी दबावों में और भी सिकुड़ती चली जाती है, लेकिन इस क़ैद से छूटकर बाहर आया एक छोटे-से दुकानदार का बेटा लोपाखिन समय को पहचानता है। औद्योगिक संस्कृति के उदय का यह नया-नया सम्पन्न व्यवसायी व्यक्ति, क्रूर और सख़्त हाथों से नया समाज बना रहा है।इस सन्दर्भ में अनुवादक राजेन्द्र यादव का कथन है : “चेखव की रचनाओं की आत्मीयता, करुणा और ख़ास क़िस्म की निराश उदासी (लगभग आत्मदया जैसी) मुझे बहुत छूती है। मैं उसके प्रभाव से लगभग मोहाच्छन्न था। उसी श्रद्धा से मैंने इन नाटकों को हाथ लगाया था। रूसी भाषा नहीं जानता था, मगर अधिक से अधिक ईमानदारी से उसके नाटकों की मौलिक शक्ति तक पहुँचना चाहता था। इसलिए तीन अंग्रेज़ी अनुवादों को सामने रखकर एक-एक वाक्य पढ़ता और मूल को पकड़ने की कोशिश करता। आधार बनाया मॉस्को के अनुवाद को। बाद में सुना, अनुवादों को पाठकों ने पसन्द किया, अनेक रंग-संस्थानों और रेडियो इत्यादि ने इन्हें अपनाया, पाठ्यक्रम में भी उन्हें लिया गया।”
 
 

यह अनुवाद

एंतोन पाब्लोविच चेखव के नाटक का यह अनुवाद अंग्रेज़ी के निम्न > अनुवादों के आधार पर किया गया है :
                  चेरी का बगीचा – 1. कॉन्स्टान्स गार्नेट
                                        2. अब्राहम यार्मोलिन्स्की
                                        3. एल. नाव्ज़ोरोव [मॉस्को संस्करण]
भाव के प्रति अधिक सचेत और अर्थ के प्रति अधिक आश्वस्त होने के लिए ही मैंने एक से अधिक अनुवादों का सहारा लिया है, फिर भी कह सकने में असमर्थ हूँ कि प्रस्तुत अनुवाद कहाँ तक सफल है। इसका कारण आत्मविश्वास की कमी नहीं, बल्कि वे मूल अनुवाद ही हैं। वे अनुवाद कहीं-कहीं तो आश्चर्यजनक रूप से एक-दूसरे से अलग हैं। मास्को से अभी ‘चेरी-ऑर्चर्ड’ का अनुवाद आया है, इसलिए इन सबमें उसे ही सबसे अधिकारी अनुवाद माना जा सकता है। लेकिन स्थान-स्थान पर यह अनुवाद अपने साथी अनुवादों से इस हद तक भिन्न हो गया है कि पहले तो मुझे सचमुच विश्वास नहीं हुआ। हिन्दी वाले अर्थ का अनर्थ करने के लिए बदनाम हैं, लेकिन इधर जब दो-तीन साल से अनुवादों के चक्कर में पड़ने का दुर्भाग्य हुआ, तो पाया कि इस दिशा में अन्तर्राष्ट्रीय साथी भी काफ़ी हैं। अंग्रेज़ी के अनुवादक मूल की अपेक्षा अपनी ही भाषा के प्रति अधिक सतर्क रहे हैं, और हिन्दी वाले मूल को ही ऐसा पकड़कर बैठ जाते हैं कि उन्हें अपनी भाषा का ध्यान ही नहीं रहता।
वस्तुतः भाषा कोई भी हो, अनुवादकों की सीमाएँ सभी जगह प्रायः एक जैसी हैं, और वह चाहे जितना अच्छा हो, उसकी भाषा-शैली मौलिक रचना से अलग होती ही है-होने को बाध्य है। जहाँ भी अनुवाद ‘मौलिक कृति’ सा लगता है वहाँ निश्चित रूप से अनुवादक काफ़ी स्वच्छन्दता ले लेता है। उसे अनुवाद की अपेक्षा भावों का पुनर्कथन कहना अधिक अच्छा है। खैर, फिर भी प्रस्तुत अनुवाद की कमियों और कमजोरियों के लिए यह सब बचाव काफी नहीं है, निश्चित रूप से वे मेरी ही कमियाँ हैं ।
-रजेन्द्र यादव     
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