1984 – By George Orwell

जॉर्ज ऑरवेल (1903-1950) अंग्रेजी भाषा के सर्वाधिक चर्चित लेखकों में से एक थे। बर्मीज डेज, एनिमल फ़ार्म और 1984 उनके प्रतिनिधि उपन्यास हैं। उनके कथेतर गद्य को भी काफ़ी सराहा गया। उन्होंने अपने समय-समाज की राजनीतिक और वैचारिक हलचलों को जिस गहरी नजर से देखा-परखा वैसा बहुत कम देखने में आता है। सत्ता तंत्र और साम्राज्यवाद की बारीक़ आलोचना उनके लेखन की उल्लेखनीय विशेषता है।
1984 सर्वसत्तावादी शासन के खतरों से आगाह करने वाला विश्वविख्यात उपन्यास है। यह अनिवार्यत: विचार और भाषा के सम्बन्धों पर केन्द्रित एक कृति है।
जाहिर है, जब विचार और भाषा एक-दूसरे को प्रभावित करते हों तो यह परिघटना किसी कालखंड में बँधी नहीं रह सकती। जब- जब कोई विचार विशेष सत्ता में होगा, उससे जुड़ी शब्दावली भी वापस प्रचलन में आएगी। यही बात इस उपन्यास को सार्वकालिक बनाती है।

प्रकाशकीय

हिन्दी पाठकों को श्रेष्ठ साहित्य उपलब्ध कराना हमेशा से हमारी प्राथमिकता रही है। अपनी इस प्रतिबद्धता के अनुरूप हम हिन्दी के साथ-साथ हिन्दीतर-देशी और विदेशी भाषाओं की श्रेष्ठ कृतियों के अनुवाद भी निरन्तर प्रकाशित करते रहे हैं। ऐसा नहीं कि विश्व की प्रसिद्ध कृतियों के अनुवाद पहले नहीं हुए, पर इस सदी के पहले वर्ष में जब हमने ‘विश्व क्लासिक श्रृंखला’ के अन्तर्गत विभिन्न विदेशी भाषाओं की किताबों के हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किए तो
इसका व्यापक स्वागत हुआ। इस श्रृंखला में कथा साहित्य भी था और विचार साहित्य भी। वास्तव में इसके जरिए हम पाठकों के समक्ष कालजयी साहित्य का वैश्विक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करना चाहते थे, जिसमें इसकी परम्परा को निर्मित करने वाली प्रतिनिधि कृतियों के साथ-साथ नई दृष्टि और नए विचारों से इस परम्परा को दिशा और विस्तार देने वाली कृतियाँ भी शामिल थीं। इस पहल के प्रति पाठकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया निश्चय ही हमारे लिए उत्साहवर्धक रही।
तब से, दो दशक से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी विश्व क्लासिक श्रृंखला में लोगों की दिलचस्पी लगातार बनी रही है। नई पीढ़ी की रुचियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए हमने इस श्रृंखला को और सुव्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है। प्रकाशन के 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा की विश्वसनीयता को आगे बढ़ाते हुए हम, अब ‘विश्व क्लासिक श्रृंखला’ को ‘राजकमल गौरवग्रंथ : विश्व क्लासिक’ के रूप में न केवल नए रंग-ढंग में प्रस्तुत कर रहे हैं, बल्कि पुराने अनुवादों को परिष्कृत और प्रस्तुति को संवर्द्धित भी कर रहे हैं। इसमें ‘विश्व क्लासिक श्रृंखला’ की पूर्व प्रकाशित किताबों के अभिनव संस्करण तो होंगे ही, वे कृतियाँ भी होंगी जिनका हिन्दी में अब तक अनुवाद नहीं हुआ था।
‘1984’ जॉर्ज ऑरवेल का बेहद चर्चित उपन्यास है। 1949 में प्रकाशित इस उपन्यास को लिखते हुए ऑरवेल ने जिस आनेवाले वक्त की तस्वीर खींची थी, अगर तारीख के हिसाब से देखें तो वह गुज़र चुका है। लेकिन इस तस्वीर के बहाने उन्होंने सोच, शासन, सत्ता, समाज, सियासत आदि को लेकर जो आशंकाएँ। जताई थीं; जो ख़तरे दिखाए थे, वे आज कहीं ज्यादा ताक़तवर और स्पष्ट रूप में हमारे सामने हैं। मानवीय विवेक और स्वतंत्रता पर नियंत्रण का खतरा आज के ‘विकसित’ और ‘लोकतांत्रिक’ दौर में कहीं और बढ़ा नज़र आता है। ऐसे में यह उपन्यास एक अनिवार्य आह्वान की तरह है, जिसको ऑरवेल ने की इच्छाशक्ति को दृढ़ता प्रदान करने के मकसद से लिखा था ताकि वह अपने विवेक और स्वतंत्रता के विरुद्ध सामने आनेवाले सभी अवरोधों को दूर कर सके।
आशा है, पाठकों को हमारी यह नवीन प्रस्तुति पसन्द आएगी। आप अपनी राय, अपने सुझाव हमें पत्र या ई-मेल के ज़रिए ज़रूर भेजें। इससे हमें इस ‘गौरवग्रंथ माला’ को बेहतर ढंग से आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
1 अक्टूबर, 2021
नई दिल्ली
अशोक महेश्वरी

क्रम

   1984
   पहला भाग
   दूसरा भाग
   तीसरा भाग
   परिशिष्ट
   न्यूस्पीक के सिद्धान्त : जॉर्ज ऑरवेल
   प्रस्तुत अनुवाद में प्रयुक्त अंग्रेजी के शब्द और
   हिन्दी में उनके प्रयोग : अभिषेक श्रीवास्तव 329
   समय सन्दर्भ
   उत्तर कथन
  2021 में ‘1984′ क्यों: अभिषेक श्रीवास्तव 345 अनुवादकीय : अभिषेक     श्रीवास्तव
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