कितना राज, कितना काज

सभी राजनीतिक सिद्धान्त कहानी की शक्ल में हैं। बहुतेरे दिलचस्प संस्मरण और राजनीतिक उद्भेदन भी हैं- नीतीश कुमार का नरेन्द्र मोदी से मोहभंग कैसे हुआ, कैसे रामविलास पासवान ने बिहार के मुख्यमन्त्री बनने का मौक़ा गँवा दिया और 2017 में ऐसा क्या हुआ था कि नीतीश ने लालू का साथ छोड़ दिया था और राबड़ी देवी कैसे किचन से कैबिनेट पहुँची थी। ये किताब तो बस बिहार की कही-अनकही कहानी का सिरा है, डोर तो आपके हाथ में है।
ये किताब जेपी आन्दोलन से निकले समकालीन बिहार के दो बड़े राजनीतिज्ञों की है, कैसे उनके मिलने और बिछड़ने से राज्य का सामाजिक समीकरण बदलता है और कैसे भारतीय जनता पार्टी हाशिए से सत्ता तक पहुँचती है। नीतीश कुमार उभयनिष्ठ तत्त्व बन जाते हैं जो उनके हिसाब से व्यावहारिक समाजवाद कहलाता है और राजनीतिक पण्डितों के हिसाब से अवसरवादिता का बेजोड़ नमूना । कहानी रेमिंगटन टाइपराइटर से आईटी की यात्रा भी है, बेली रोड से सभ्यता द्वार की भी है।

कवि परिचय

            संतोष सिंह
            जन्म : भागलपुर।
            पैतृक गाँव : रामचुआ (बाँका)।
शिक्षा : एम. ए. (पत्रकारिता और जनसंचार), गोल्ड मेडलिस्ट, नालन्दा खुला विश्वविद्यालय, पटना; स्नातकोत्तर डिप्लोमा (पत्रकारिता), एशियन कॉलेज ऑफ़ जर्नलिज़्म, बेंगलुरु: स्नातक (अंग्रेज़ी प्रतिष्ठा), टीएनबी कॉलेज, भागलपुर ।
किताबें : कामदेव सिंह : दी ओरिजिनल गॉडफादर ऑफ़ इंडियन पॉलिटिक्स (2022), जेपी टू बीजेपी : बिहार आफ्टर लालू एंड नीतीश (2021), रूल्ड और मिसरूल्ड : दी स्टोरी एंड डेस्टिनी ऑफ़ बिहार (2015)।
सम्मान : इंडियन एक्सप्रेस अवॉर्ड्स फॉर एक्सीलेंस इन इनवेस्टीगेटिव जर्नलिज़्म, 2021, रेड इंक अवॉर्ड, 2019 और 2018, प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया अवॉर्ड फॉर डेवलपमेंट जर्नलिज्म, 2013, एक्सप्रेस एक्सीलेंस अवॉर्ड, 2012, दी स्टेट्समैन रूरल रिपोर्टिंग अवॉर्ड, 2010, के सी कुलिश अवॉर्ड फॉर एक्सीलेंस इन प्रिंट जर्नलिज़्म, 2009 ।
पूर्व में : दी टेलीग्राफ (2006-2008), दी स्टेट्समैन (2000-2006), दी एशियन एज (1998-2000)। सम्प्रति : वरीय सहायक सम्पादक, दी इंडियन एक्सप्रेस, पटना (2008 से…) ।
मो. : 9430676211
 
         कल्पना शर्मा
18 साल से मीडिया में सक्रियता से अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाते हुए ये वर्तमान में ब्रूट के साथ बतौर सीनियर वीडियो जर्नलिस्ट जुड़ी हैं। इससे पहले कल्पना को बीबीसी, एनडीटीवी, न्यूज़ 18, ज़ी न्यूज़ जैसे संस्थानों में अपनी रचनात्मकता दिखाने का मौक़ा मिला। अपने शहर भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से 2005 में मास्टर्स इन एडवर्टाइजिंग किया जिसने इन्हें स्टोरीटेलिंग की बारीकियों को समझाया। ये अनुवाद के दौरान अंग्रेज़ी के भावों को हिन्दी में उतारने का काम बेहद रुचि के साथ करती हैं। हालाँकि किताब का अनुवाद करने की हिम्मत ये पहली बार जुटा पायी हैं।
 

 

 
  गिरो जैसे गिरती है बर्फ़
  ऊँची चोटियों पर
  जहाँ से फूटती हैं मीठे पानी की नदियाँ
  गिरो प्यासे हलक में एक घूँट जल की तरह
  रीते पात्र में पानी की तरह गिरो
  उसे भरे जाने के संगीत से भरते हुए 

 

  नरेश सक्सेना        

अनुक्रम

  मैं बिहार हूँ
  1. लालू का ‘लोहा’
  2. सदाकत आश्रम से बीरचन्द पटेल पथ तक…
  3. करिश्माई लालू
  4. धर्मनिरपेक्षता का ‘रथ’
  5. बदहाल बिहार
  6. लालू का ‘साधुवाद’
  7. राबड़ी राज
  8. ये किसका लहू है, कौन मरा
  9. अब कोई चारा नहीं
  10. नीतीश कुमार का नया बिहार
  11. सुशासन की दस्तक
  12. राजनीतीश
  13. थोड़ा सा बाहुबल
  14. नीतीश : एक सामाजिक अभियन्ता
  15. नीतीश-मोदी कलह और एनडीए में फूट
  16. नीतीश के यू टर्न
  17. जीतन राम माँझी और महादलित राजनीति
  18. और कमल खिला
   19. रामविलास पासवान : शहरबन्नी से संसद तक
  1. फिर क्या होगा उसके बाद
          धन्यवाद      
You May Also Like

Mud-Mudke Dekhta Hoon

मुड़-मुड़के देखता हूँ राजेन्द्र यादव का आत्मकथ्य है। इसमें उन्होंने अपने जीवन के ऐसे मोड़ों का क्रि किया…
Read More