Maharaja Jawahar Singh Aur Uttaraadhikari

मुगल साम्राज्य के विघटन का विश्लेषण करने के लिए क्षेत्रीय शक्तियों का सूक्ष्म अध्ययन आवश्यक है। (स्वः उपेन्द्रनाथ शर्मा ने अपनी प्रथम दो कृतियों में विवरण प्रस्तुत किया है कि किस प्रकार औरंगजेब के परवर्ती काल मुगल दरबार
के शक्तिशाली तत्व पतनोन्मुख साम्राज्य को पुनर्जीवित करने तथा अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति जाटों को अपने पक्ष में करने के लिए समयोचित प्रयत्न करते थे।) कौमी एकता, सामाजिक परिणय सूत्र बंधन सिद्धान्त, सहकर्मियों में सामूहिक दायित्व की भावना, भिन्न-भिन्न जातियों, खापों, मतमतान्तरों, धर्म एंव सम्प्रदायों में आपसी सद्भाव तथा धर्मनिरपेक्षता से ही स्वतन्त्रताप्रिय जाटों ने कृषक प्रधान राज्य की स्थापना में अद्भुत सफलता प्राप्त की थी। महाराजा सूरजमल को उत्तर पानीपत काल के राजनैतिक मामलों मुख्य स्थान प्राप्त था।
स्वः उपेन्द्रनाथ शर्मा ने अपनी इस तृतीय कृति में विवरण प्रस्तुत किया है कि महाराजा सूरजमल के उत्तराधिकारी जवाहर सिंह में शासकीय क्षमता एवं सैन्य संचालन का अद्भुत सामर्थ्य था। उसने जाट राज्य का विस्तार किया तथा उसकी 
सुरक्षा हेतु परम्परागत युद्ध-विधि की अपेक्षा आधुनिकतम यूरोपिय युद्ध शैली तथा नवीनतम हथियारों से सुसज्जित, अनुशासित सैन्य बल की ओर विशेष ध्यान दिया। वह स्वाभिमानी, निर्भीक, दुस्साहसी तथा दृढ़ सेनापति था। परन्तु उसकी अदूरदर्शिता, अतिशय महत्त्वाकांक्षा, युयुत्सु प्रवृति, अधिरता, प्रतिशोध परायणता एवं निरंकुश प्रवृति के कारण उसे राजपरिवार के घटकवाद का शिकार होना पड़ा। जवाहर सिंह के उत्तराधिकारी भी इस घटकवाद के शिकार हुए और जाट-राज्य के विघटन का कारण बने।
इस ग्रंथ की एक विशेषता यह भी है। कि इसमें जाट राज्य के समग्र उत्कर्ष और अपकर्ष के आकलन के साथ-साथ जाट प्रदेश में पल्लवित साहित्य एवं साहित्यकारों का उपयोगी विवरण प्रस्तुत किया गया है। अन्त में वास्तुकला, स्थापत्य कला एवं सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा व समृद्धि पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है।
जिनकी प्रेरणा से यह कार्य अपने हाथों में लिया, मेरे प्रति उनके स्नेह एवं विश्वास के सामने सम्पादन का अदृश्य परिश्रम तथा प्रकाशन के झंझट बौने हो गए, उन्हीं कलापारखी एवं गुणग्राही श्री रामनिवास जी मिर्धा को सादर समर्पित
– डॉ. वीर सिंह

अनुक्रम

1. सूरजमल का परिवार, आय, सैन्यबल तथा घटक
सूरजमल का परिवार एवं सन्तति 1; संततियों का मातृपक्ष 3; जाट – राज्य की सीमाएँ 4; राजस्व 5; टकसाल 6; स्थायी सैन्य शक्ति 6; जवाहरसिंह का आरम्भिक जीवन व कार्य कुशलता 7; महाराव नाहरसिंह का आरम्भिक जीवन 8; राजवंश का पारिवारिक
घटक 9

2. जवाहरसिंह का राज्यारोहण : नजीब से युद्ध ( 1765-65 ई.) 14
नाहरसिंह का प्रतिरोध तथा पलायन 14; जवाहरसिंह का राज्यारोहण, दिसम्बर 30, 1763 ई., 15; व्यावहारिक कठिनाइयाँ 16; माजी हँसायिा का सहयोग 17; मध्य दोआब से नजीब का पलायन 17; जयपुर से उत्तराधिकार का टीका 18; सैन्य संगठन 20; नजीब का कूट समर्पण 22; मल्हारराव से सहयोग प्राप्त करने में सफलता 23; नजीब की सुरक्षात्मक सामरिक तैयारियाँ 26; जवाहरसिंह का भरतपुर से प्रस्थान 26; पश्चिमी तट से आक्रमण की योजना 28; पुराना किला के समीप प्रथम युद्ध, नवम्बर 15, 1763 ई., 29; नवम्बर का संघर्ष 30; यमुना के पूर्वी तट से गोलाबारी 32; सिक्खों का आगमन तथा दिल्ली पर आक्रमण, जनवरी 1765 ई., 33; इमाद तथा मल्हार की उदासीनता 36; इमाद तथा मल्हार परिवार का पलायन 37; सहयोगियों का विश्वासघात 39; नजीब के साथ शान्ति – समझौता, फरवरी, 1765 ई. 40; शाह दुर्रानी की वापसी : अलासिंह को राजा की उपाधि 43; दिल्ली अभियान का परिणाम 
3. कुटम्बी-जनों तथा देशस्थ सरदारों का दमन (अप्रैल, 1765-अप्रैल, 1766 ई.)
पड़ौसी तथा विदेशियों की भर्ती 50; फ्रेंच कप्तान समरू का सेवा में प्रवेश 51; कुलीन सामन्तों तथा सरदारों का दमन, जुलाई-अगस्त, 1765 ई. 54; बलराम तथा मोहनराम का दमन 55; राजा बहादुर सिंह पर चढ़ाई, अगस्त-सितम्बर, 1765 ई. 57; वैर अभियान में सफलता 59
4. महाराव नाहरसिंह के साथ अन्तिम निर्णायक संघर्ष
नाहरसिंह को होल्कर का संरक्षण 65; नाहरसिंह कबीलों का जयपुर प्रस्थान 67; उत्तराधिकार का दावा 68; जाट व सिक्ख, भरतपुर व गोहद का आपसी सहयोग; सिक्खों का दिल्ली प्रान्त में प्रवेश, अक्टूबर-दिसम्बर, 1765 ई. 71; कछवाहा राज्य पर आक्रमण, जनवरी-फरवरी, 1766 ई. 72; पानीपत संग्राम की पुनरावृति, मार्च, 1766 ई. 73; मल्हारराव का पूर्ण पराभव 75; सिक्ख सवारों की सुरक्षित विदाई 76; नबाव मुसाबी खाँ की मुक्ति 77; नाहरसिंह का परलोकवास, दिसम्बर, 1766 ई. 77
5. संघर्ष, समझौता तथा दिग्विजय
रघुनाथराव का उत्तर मालवा में प्रवेश 82; गोहद राज्य पर प्रथम आक्रमण 83; जवाहरसिंह के मराठा निरोधक प्रयास 85; जवाहरसिंह का हस्तक्षेप : गोहद-मराठा समझौता 87; दुर्रानी का भारत प्रवेश : जाट-मराठा समझौता 89; गुसाईं बन्धुओं का विश्वासघात तथा उनका दमन 92; रघुनाथराव की वापसी 94
6. ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ जाटों का सम्पर्क (1765-1768 ई.)
समरू के समर्पण की विफल माँग 99; छपरा का विफल सम्मेलन, जून, 1766 ई. 101; दुर्रानी का भारत और कम्पनी सरकार के कूट प्रयास, दिसम्बर-मई 1767 ई. 103; जवाहरसिंह की दुर्रानी के प्रति नीति 104; जाट-अंग्रेजों की पारस्परिक मित्रता के मौलिक कारण 109; पारस्परिक मित्रता की संभावना 109; मित्रता का अन्तिम विफल प्रयास 113; सद्भावी समझौता 114
7. मावण्डा-मढ़ौली युद्ध (सितम्बर, 1767 ई. मार्च 1768 ई.)
उत्तराधिकारी का जन्मोत्सव, सितम्बर, 1767 ई. 117; मराठा निरोधक संघ की योजना 118; जवाहर सिंह का पुष्कर प्रस्थान 118; जाट-कछवाहा मतभेदों के कारण 119; कछवाहों का मराठी से नियमित सम्पर्क 123; श्री पुष्करजी में सद्भावी सम्मेलन 124/ जयपुर ( में फौजों का जमाव 125; युद्ध की तैयारियाँ : प्रस्थान 127; कछवाहों की प्रवंचनात्मक कूटनीति 128; मावण्डा महौली युद्ध, दिसम्बर 14, 1767 ई. 129; आक्रमण-प्रत्याक्रमण 131; युद्ध का परिणाम 134; जवाहरसिंह की दृढ़ता : प्रत्याक्रमण की तैयारियों 135; सीमांत परगनों की माँग 136; कछवाहों के विफल कूटनयिक प्रयास 137; सिक्खों के साथ करार तथा उनकी भर्ती 139; कामां युद्ध, 29 फरवरी और माधोसिंह का प्राणान्त, 5 मार्च 139; कम्पनी सरकार की नीति : शुजा का नैतिक पराभव 140, fer सीमान्त परगनों में अन्तिम झड़पें, मार्च, 1768 ई. 142; खोहरी गढ़ी पर अधिकार 143; परगना रामगढ़ झड़प 144, सिक्ख सवारों की विदाई : जाट कछवाहा समझौता 144
8. परलोकवास : मूल्यांकन 
जवाहरसिंह की कारुणिक हत्या 155; हत्यातिथि की प्रामाणिकता 157; चरित्र तथा उपलब्धियाँ 157; राज्य की आर्थिक स्थिति 159; सैन्य संगठन 159; धार्मिक भावनाएँ 161
9. महाराजा सवाई रतनसिंह
(अगस्त, 1768-अप्रैल, 1769 ई.)
उत्तराधिकारी का कलह एवं राज्यारोहण 165; पराराष्ट्र नीति 167; सिक्खों से झड़प : भदावर उपद्रव 168; भादो मास का सांस्कृतिक पर्व 168; होली का सांस्कृतिक महोत्सव 169; सवाई रतनसिंह की हत्या, अप्रैल 8, 1769 ई. 170
10. महाराजाधिराज ब्रजेन्द्र सवाई केहरीसिंह
केहरसिंह का राज्यरोहण, अप्रैल 12, 1769 ई. 172: दूरस्थ सीमान्त जिलों के विद्रोह का दमन 172; दानशाह की नायक पद से मुक्ति 173; राव नवलसिंह का नायब पद प्राप्त करना 174, कम्हेर दुर्ग का घेरा, फरवरी, 1770 ई. 175; सिक्ख सरदारों का राज्य में प्रवेश 176; सिक्खों से युद्ध और समझौता, 1770 ई. 178, मराठा आक्रमण, मार्च-अप्रैल, 1770 ई. 179, राव रणजीतसिंह की सहायता का निर्णय 181; अऊ छावनी के समीप साधारण झड़पें 181; नजीब के कूट प्रस्ताव 82; साँख अड़ींग का विनाशकारी युद्ध, अप्रैल 6, 1770 ई. 184; युद्ध का परिणाम 186, जाट प्रशासन का नैतिक व सैनिक पराभव 187; गढ़ी नौह व परगना पर नजीब का अधिकार, अप्रैल 9 188; रणजीत सिंह का प्रस्ताव : मराठा-नजीब समझौता 188; मध्य व दक्षिण दोआब पर अधिकार, 189; मामलत का दबाव : भुगतान में विलम्ब 190; नजीब की मध्यस्थता तथा समझौता 192
11. पारस्परिक विवाद तथा आपसी सहयोग (1771-73 ई.)
सैन्य संगठन का प्रयास, दिसम्बर, 1770 ई. 202; हस्तान्तरण पत्र सौंपने का दबाव, मार्च, 1771 ई. 203; 6 लाख की माँग, पलवल में लूट व समझौता, मई-जुलाई, 1771 ई. 204; मध्य दोआब में २ नूहगढ़-खुर्जा आदि पर अधिकार, अक्टूबर-नवम्बर, 1761 ई. 206; उत्तरी सीमान्त परगनों पर अधिकार तथा मामलत विवाद, अक्टूबर-जनवरी, 1772 ई. 206; भू-राजस्व वसूली : नवलसिंह की शादी से मतभेद, मार्च-जून, 1772 ई. 207; विरोधी सामन्तों का दमन, 1772 ई. 208; सम्राट विरोधी परिसंघ, मई-नवम्बर, 1772 ई. 209; उत्तरी महालों पर अधिकार : मेडक का विश्वासघात, अक्टूबर-नवम्बर, 1772 ई. 211; संयुक्त सेनाओं का राजधानी पर आक्रमण, नवम्बर, 1772 ई. 213; महादजी के साथ समझौता 216
12. नजफ का प्रथम अभियान: आगरा का पतन (1773-74 ई.)
४९९ गुर्जर विद्रोह का दमन, जुलाई, 1773 ई. 221; सम्राट के प्रति
समर्पण तथा पड़ोसी शक्तियों से सहयोग का प्रयास 222; नजफ का मैदानगढ़ी पर अधिकार, अगस्त, 17, 1773 ई. 225; दनकौरछाता में युद्ध, सितम्बर, 1773 ई. 227; आगरा प्रान्त की सूबेदारी, सितम्बर 24, 1773 ई. 230; मिर्जा नजफ का बंचारी तक बढ़ना 7-16 अक्टूबर, 1773 ई. 232; समझौता वार्ता तथा आपसी झड़पें 233; लूट व बरबादी 236; बरसाना युद्ध, अक्टूबर 30, 1773 ई. 238; कोटवन गढ़ी पर अधिकार, नवम्बर, 1773 ई. 242 आगरा दुर्ग का घेरा व समर्पण, 11 दिसम्बर-18 फरवरी, 1774 ई. 245; छापामार नीति में विफलता 245; शुजा के कूटनयिक प्रयास 246; शुजा की सैनिक सहायता 247; आगरा दुर्ग का समर्पण 247; बल्लभगढ़ तथा फर्रुखनगर दुर्गों का पतन, अप्रैल-मई, 1774 ई. 249; रणजीत सिंह की विफलता, मार्च-अगस्त, 1774 ई. 250
13. नजफ खां का द्वितीय अभियान : डीग दुर्ग का पतन (1774-1777 ई.)
सोनोखर गढ़ी अभियान 259; कामां पर मुगल अधिकार, मार्च, 1775 ई. 260; घाटी युद्ध, मई 18, 1775 ई. 261; कछवाहो के साथ समझौता : रहीमदाद जाट शिविर में 262; गोहाना तथा गोवर्द्धन में झड़पें 10 जून 263; नवाब मेडक की बर्बादी, 29 जुलाई 263; नवलसिंह का प्राणान्त, अगस्त 10, 1775 ई. 265/- रणजीतसिंह का पलायान व सत्ता संघर्ष, अगस्त-नवम्बर, 1775 ई. 268; रणजीतसिंह का डीग में प्रवेश, नवम्बर, 1775 ई. 272: राव प्रताप का अलवर दुर्ग पर अधिकार, नवम्बर 25, 1775 ई. 273; डीग दुर्ग का घेरा, दिसम्बर-अप्रैल, 1776 ई. 274; शाहबुर्ज का घेरा व गोपालगढ़ पर अधिकार, दिसम्बर-जनवरी, 1776 ई. 274; मध्यरात्रि का विफल आक्रमण, जनवरी, 1776 ई. 276; आठ फिरंगी दो गोरा, लड़े जाट के दो छोरा 277; अवध के भगोड़ा सेनानायकों का आगमन 277; मोशियर लेवस्साउट की विफलता 278; खाद्यान्नों की नाकेबन्दी में सफलता 279: खाद्य-पदार्थों का अभाव : नागरिकों का समर्पण 280; मुगलों का डीग पर अधिकार, अप्रैल 30. 1776 ई. 280; रनिवास में जौहर 282, रक्षकों का प्राणोत्सर्ग 282; विजय का परिणाम 283: रानी किशोरी का महादजी से सहायता प्राप्त करने का प्रयास 284; नजफ को आर्थिक कठिनाइयाँ : सैन्य बलों में असन्तोष 28.5 दोआब में ठेनुआ जाटों का सहयोग: समर्पण 285, मुरसान पर अधिकार, जनवरी 2, 1777 ई. 286, रामगढ़ दुर्ग पर अधिकार 287, सजादत अली की पथैना में पराजय 287; सवाई केहरीसिंह का देहावसान,
अप्रैल 7, 1777 ई. 289
14. जाट साम्राज्य का उत्कर्ष तथा अपकर्ष
वित्तीय स्थिति 296; टकसाल 297; स्थायी सैन्य शक्ति 297
15. साहित्य तथा साहित्यकार
ब्रजभाषा कवि व साहित्य 303; जैन कवि तथा साहित्य 308;
सन्त कवि व उनका साहित्य 309; सन्त लालदास, 1540-1648 ई. 309; सन्त कवि चरणदास, 1703-1783 ई. 310; रसिक भक्त तथा रचनाकार 310
16. सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा व समृद्धि
वास्तुकला एवं स्थापत्य कला 314; ब्रज क्षेत्रीय तीर्थों का विकास 315; डीग दुर्ग तथा उद्यान भवन 317; डीग शब्द की व्युत्पत्ति तथा राजधानी 317; दुर्ग की संरचना 319; गढ़ परकोटा की संरचना 320; नगर की संरचना 322; चौदह भुवनों की परियोजना 322; काल्पनिक अवधारणाएँ 323; वास्तुविदों तथा शिल्प पारखियों का मूल्यांकन 324; मुख्य आकर्षण : गोपाल भवन 326; श्रावण-भादों भवन 328; संगमरमर की चौकी व हिंडौला (झूला) 329; संगमरमर व संगमूसा के पट्ट 329; सूरज भवन 330; हरिदेव भवन 331; विशाल हौज 331; किसन भवन 332; केशव भवन 332; नन्द भवन 333; सिंह पौर 333; राम भवन 334; चन्द्रभवन (छत्ता भवन) 334; रूपसिंह की छतरी तथा बाग 334; ड्योढ़ी केहरी सिंह या नवल सिंह 334
संकेताक्षर एवं ग्रंथ सूची
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