गैर-सरकारी संगठनों का प्रबन्धन

गैरसरकारी संगठनों ने अपनी क्षमता कार्यक्रम कियान्वयनकर नीति रिस साधनांक अनुकूलतम उपयोग से एक अलग जगह बनाई है। स्वैच्छिक क्षेत्रक हेतु राष्ट्रीय नीति 2007 में इन संगठनों के प्रतिनिधियों के ज्ञानवर्धन एवं प्रशिक्षण का वर्णन है। गैर सरकारी संगठन में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं तथा यह विषय पढ्ने वाले छात्रों को हिन्दी में अध्ययन सामग्री की आवश्यकता थी। आशा है यह पुस्तक इस कमी को पूर्ण करेगी। पुस्तक में संस्था के विजन, गठन, पंजीयन से लेकर परियोजना प्रबंधन एवं कोष प्रबंधन की सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की गई है।
 
यह पुस्तक गैर-सरकारी संगठन में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं रिगामीण वकास. प. बंधन समाजकार्य इत्यादि विधा के छात्रों के लिए अत्यंत उपयोगी होगी।
डॉ. देवेन्द्र प्रसाद पाण्डेय ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय
से डी. फिल तथा पुणे विश्वविद्यालय से प्रबंधन में मास्टर डिग्री ली। इसके पूर्व उन्होंने आई.ई.आर.टी. इलाहाबाद से ग्रामीण विकास एवं प्रबंधन में परास्नातक उपाधि प्राप्त की। डॉ. पाण्डेय ने एक वर्ष हिन्दाल्को में ग्रामीण विकास अधिकारी के रुप में कार्य किया। वे वर्ष 1993 से महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट में “गैर सरकारी संगठनों का प्रबंधन” विषय का अध्यापन कर रहे हैं। उन्होंने निदेशक, नेहरु ग्राम भारती विश्वविद्यालय के रुप में अपनी सेवायें दी हैं। सम्प्रति-वे महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट में ग्रामीण प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष हैं। उन्होंने 70 शोधपत्र. 110 लेख एवं 6 पुस्तकें लिखी हैं।

  अनुक्रमणिका

  प्राक्कथन.
  इकाई 1: गैर-सरकारी संगठनों का अर्थ, दर्शन, भूमिका, विजन एवं मिशन.
  इकाई – 2: गैर-सरकारी संगठनों का गठन एवं पंजीयन.
  इकाई – 3: परियोजना प्रबंधन
  इकाई 4: गैर-सरकारी संगठनों का संचालन एवं प्रबंधन.
  इकाई 5: गैर-सरकारी संगठनों में कोष प्रबन्धन.
  संलग्नक,

प्राक्कथन

1953 में केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड स्थापना समारोह में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वैच्छिक संगठनों को लोकतंत्र की तीसरी आँख के रूप में सम्बोधित करते हुए उनकी भूमिका को रेखांकित किया था।
गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका के बारे में विद्वानों में विभेद है। एक ओर जहाँ पेत्रास और वेल्तमेयर (2006), आम्बरी (1998), मीनाक्षी (2004). प्रसाद (1998) इत्यादि ने गैर-सरकारी संगठनों के गैर-सरकारी कार्य, उनकी ताकत के प्रभाव का वर्णन किया तो दूसरी तरफ ओ.ई.सी.डी. (1988). इलियट (1987). फर्नाण्डीज (1987) तथा मिश्र (2006) ने गैर-सरकारी संगठनों द्वारा किये जा रहे सेवा कार्य को गरीब तबके के हित में बताया तथा ऐसे संगठनों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया ।
वर्ष 2013 के केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के एक प्रतिवेदन के अनुसार “कुछ आर्थिक विकास को नकारात्मक रूप से विदेशी सहायता प्राप्त संगठन भारत प्रभावित कर रहे हैं। कुछ इसी तरह का वक्तव्य पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने विज्ञान पत्रिका को दिये गये साक्षात्कार में दिया जब उन्होंने कहा कि “गैर सरकारी संगठन विदेश से पैसा लेते हैं तथा भारत में कृषि, बिजलीघर एवं अन्य परियोजनाओं का विरोध कर रुकवाते हैं।”
विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में स्वैच्छिक संस्थाओं की महती भूमिका का वर्णन मिलता है। देश के दूर-दराज, आदिवासी क्षेत्रों में गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकर्ता पूरे मनोयोग से सेवा कार्य में लगे हैं।
इस पुस्तक को तैयार करने में लेखक ने बहुत सी अध्ययन सामग्री का उपयोग किया है, उन सभी संदर्भित एवं असंदर्भित स्रोतों के प्रति आभार । लेखक प्रकाशक का आभारी है कि उन्होंने पुस्तक का प्रकाशन करके पाठकों को
उपलब्ध कराया ।
देवेन्द्र प्रसाद पाण्डेय
विभागाध्यक्ष, ग्रामीण प्रबन्धन विभाग
महात्मा गाँधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय,
चित्रकूट, सतना (म.प्र.)
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