Madhya Pradesh ki Kala Evam Sanskriti

मध्य प्रदेश की कला एवं संस्कृति, एक ऐसी कृति है, जिसमें मध्य प्रदेश की कला एवं संस्कृति से जुड़े लगभग सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को समाहित किया गया है। मध्य प्रदेश के बारे में जानकारी चाहने वाले जिज्ञासु पाठकों को इस पुस्तक में अत्यन्त रोचक रूप में विश्वसनीय जानकारियाँ मिलेंगी ।
इस पुस्तक में मध्य प्रदेश के इतिहास, भूगोल, अर्थव्यवस्था, सामाजिक पारिवारिक व्यवस्था विवाह-पद्धतियाँ, महिलाओं की समाज में स्थिति, वेशभूषा, खान-पान लोक नृत्य, संगीत आदि की विशद जानकारी दी गई है। जो जिज्ञासु पाठकों के लिये यंत्र-तंत्र भटकाव का अन्त सिद्ध होंगी । 
पुरात्तात्वीय तथा कला-साहित्य के संदर्भ में अब तक की गई खोजों तथा महत्वपूर्ण रचनाओं तथा रचनाकारों तथा विभिन्न संग्रहालयों तथा पुस्तकालयों की जानकारी भी सहज ही इस पुस्तक में उपलब्ध हैं। पर्यटन की दृष्टि से मध्य प्रदेश की जानकारी चाहने वालों को भी इस पुस्तक में यहाँ के प्रमुख उत्सवों, मेलों तथा धार्मिक स्थलों की जानकारी मिल जायेगी।सम्पूर्ण पुस्तक में विश्वसनीय तथ्यों को सम्मिलित करके, गहन अध्ययन के पश्चात इसकी रोचकता व सुगम्यता का प्रवाह बनाये रखा गया है, ताकि “भारत की हृदयस्थली” मध्य प्रदेश के बारे में एक विद्वजन से लेकर एक सामान्य पाठक तक एक सरसता के साथ तथ्य प्रस्तुत हो सकें गोपाल भार्गव एक विद्वान लेखक हैं। इनकी शिक्षा-दीक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय में हुई। लेखक शहरी एवं राष्ट्रीय योजना आयोग / संस्थान में वरिष्ठ पदाधिकारी रह चुके हैं। इन्होंने शहरी विकास से सम्बंधित विभिन्न शोध पत्रों का योगदान किया है।

परिचय

मध्य प्रदेश या प्राचीन काल का गोंडवाना अर्थात गोंड समुदाय का घर, भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे पुराना स्थल है। भारत की हृदय स्थली कहलाने वाला यह प्रदेश स्वयं में पाँच अलग-अलग संस्कृतियों का क्षेत्र है। निमाड़, मालवा, बुन्देलखण्ड, बघेलखण्ड तथा ग्वालियर की ये विभिन्न लोकसंस्कृतियों के अतिरिक्त अनेक जनजातियों की चिर प्राचीन आदिम संस्कृति भी मध्य प्रदेश में सहज रूप से दृष्टिगत होती है।

उद्भव

मध्य प्रदेश का सबसे प्रारम्भिक अस्तित्वमान राज्य अवन्ति था, जिसकी राजधानी उज्जैन थी । तीसरी से चौथी शताब्दी के बीच मौर्य साम्राज्य का अंग रह चुका यह राज्य मालवा के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य की स्थापना नवम्बर, 1956 को हुई थी। इसका वर्तमान स्वरूप 1 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आया था, जब एक नया राज्य छत्तीसगढ़ सृजित करने हेतु मध्य प्रदेश पुनर्संगठन अधिनियम, 2000 पारित हुआ था। मध्य प्रदेश भारत के मध्य भाग में अवस्थित है, अतः अनेक लोग इस राज्य को भारत का हृदय राज्य कहते हैं। प्राचीन काल में इस क्षेत्र को दण्डकारण्य कहा जाता था, जबकि बाद में अंग्रेजों के शासनकाल में इसको मध्य प्रान्त (सेंट्रल प्रोविन्सेज) नाम दिया गया था। भौगोलिक दृष्टि से यह भारत का सबसे बड़ा राज्य रहा है।
21°04′ एन अक्षांश तथा 74°02′ और 82° 49′ ई देशांतर के बीच यह राज्य भारत के केन्द्रीय भाग में अवस्थित है। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 3,08,252 वर्ग कि.मी. है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का 9.38 प्रतिशत है। राज्य का वन क्षेत्रफल 95,221 वर्ग कि.मी. है जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल का 31 प्रतिशत और देश के वन क्षेत्रफल का 12.44 प्रतिशत है। राज्य की कुल जनसंख्या 60,385,118
मध्य प्रदेश भारत के सात राज्यों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा बिहार द्वारा परिबद्ध है। अंग्रेजों के शासनकाल में दो प्रान्त लेकिन इन दोनों को मिलाकर मध्य प्रदेश बना दिया था। सन 1947 में बेराय, मध्यप्रान्त बलख तथा गरि मिलाकर मध्य प्रदेश राज्य सृजित किया गया था। उसी समय, मध्य भारत की उत्तरी रियासतों का विलय कर विंध्य प्रदेश बनाया गया था। भोपाल एक अलग राज्य था। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के पश्चात् मध्य प्रदेश भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का दूसरा और जनसंख्या की दृष्टि से देश का सातवाँ सबसे बड़ा राज्य है। राज्य को कुल 45 जनपदों में बांटा गया (पहले 61 जनपद थे) है। राज्य के कुल नौ राजस्व प्रभाग है, तथा कुल 315 विकासखण्ड है, जो विकासात्मक गतिविधियों की इकाई है। राज्य का 8.49 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र वन क्षेत्र है, जो राज्य के क्षेत्रफल का 27.2 प्रतिशत भाग है, जबकि कृषि क्षेत्रफल लगभग 49 प्रतिशत है। 1 नवम्बर, 1956 को निम्नलिखित क्षेत्रों और जनपदों को मिलाकर मध्य प्रदेश राज्य का सृजन किया गया था :-
(1) बुल्लाना, अकोला, अमरावती, यवतमाल, वर्धा, नागपुर, भंडारा तथा चांद जनपद बॉम्बे प्रान्त में विलय कर दिये गए थे, जो वर्तमान काल में महाराष्ट्र राज्य के अंग हैं। शेष भाग मध्य प्रदेश में सम्मिलित किए गए। थे;
(2) मंदसौर जनपद की भानपुरा तहसील (सुनेल टप्पा भाग छोड़कर)
(3) भोपाल राज्य
(4) राजस्थान के कोटा जनपद की सिरोज तहसील तथा
(5) विंध्य प्रदेश राज्य मध्य प्रदेश में विलय किए गए थे।
मध्य प्रदेश की सीमाओं के पुनर्-संरक्षण के आधार पर मध्य प्रदेश का वर्तमान स्वरूप अस्तित्व में आया है। राज्य में 45 जनपद तथा 12 प्रभाग थे। नब्बे के दशक में 16 नए जनपदों के सृजन से कुल जनपद 61 तथा प्रभाग बारह थे। बाद में नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश राज्य के विभाजन से छत्तीसगढ़ नामक नए राज्य का सृजन किया गया था।

इतिहास

आदिम जनजातियां रहती थीं। इन्हीं गोंड जनजातियों के वास के कारण यह क्षेत्र गोंडवाना कहलाता था । गोंडवाना हिंदुत्व के प्रारंभिक वीरोचित कालों में साहसिक अन्वेषण के दायरे से पूरी तरह बाहर नहीं था। रामायण में रामटेक (नागपुर के निकट) स्थित सुतीक्ष्ण के आश्रम जाते समय राम द्वारा दण्डक कानन, जो यमुना से गोदावरी तक फैला हुआ था, पार करने का उल्लेख है। सदियों तक यहां अनेक राजपूतों की जागीरें हुई थीं तथा खुले देहात का बड़ा भाग उनके प्रभुत्वाधीन था। किंतु इनकी वर्तमान जानकारी वहां से प्राप्त सिक्कों, ताम्र अथवा पाषाण शिलालेखों, प्राचीन नगरों के भग्नावशेषों और राजपूत अन्वेषणों की गाथाओं में संयोगिक उल्लेखों से प्राप्त की गई है। जबलपुर में रूपनाथ में अशोक कालीन शिलालेख की मौजूदगी से अशोक का साम्राज्य मध्यप्रान्त के इस भाग तक फैले होने का प्रमाण मिलता है। सागर जनपद में ऐरान से मिले चौथी तथा पांचवीं शताब्दी के शिलालेखों से संकेत मिलता है कि ऐरान और इसके आसपास का क्षेत्र मगध के महान गुप्त वंश के अधिकार में था ।
सिवनी तथा अजंता गुफाओं से मिले कतिपय शिलालेखों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि वकाटक वंश तीसरी सदी से सतपुड़ा पठार और नागपुर के मैदानी भाग पर शासन कर रहा था। इसके संस्थापक का नाम विंध्यशक्ति उल्लेखित हैं। इन राजकुमारों की राजधानी चांदा में भंडाक प्रतीत होती है, जो प्राचीन काल की महत्पपूर्ण नगरी थी। ऐसा प्रतीत होता है कि नौवीं से बारहवीं सदी तक यह क्षेत्र महोबा के राजपूत राजकुमारों के अधीन था। लगभग इसी काल में असीरगढ़ का वर्तमान दुर्ग चौहान राजपूतों के आधिपत्य में था । मालवा का परमार साम्राज्य ग्यारहवीं तथा तेरहवीं सदी के बीच नर्मदा घाटी के पश्चिमी भाग तक फैल गया था।
ग्यारहवीं अथवा बारहवीं सदी के कुछ शिलालेखों के पश्चात् पन्द्रहवीं अथवा सोलहवीं सदी में गोंड शक्तियों के उदय तक अंधकारमय अंतराल है। बेतूल के निकट खेड़ला में स्थापित गोंड साम्राज्य सर्वप्रथम प्रसिद्ध साम्राज्य था। सोलहवीं सदी में गढ़ मांडला के गोंड वंश के 47वें राजा संग्राम शाह ने मांडला अधित्यका से निकलकर सागर, दायोह, भोपाल, नर्मदाघाटी और सतपुड़ा आधित्यकार पर मांडला सिवनी सहित 52 गढ़ों अथवा जनपदों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
गोंडवाना में निमाड़ शामिल नहीं था तथा यह क्षेत्र दो सदियों तक खानदेश के फारुकी साम्राज्य में शामिल था। सन् 1600 में अकबर ने अंतिम फारुकी राजा से असीरगढ़ का किला जीत लिया तथा खानदेश को अपने साम्राज्य में मिला लिया। बाद में बेरार भी मुगल प्रान्त बन गया था।
सन् 1803 तक नागपुर दरबार तथा अंग्रेजों के बीच संबंध सामान्यतः मैत्रीपूर्ण थे, लेकिन उसी वर्ष रघुजी द्वितीय अंग्रेजों के विरुद्ध संगठन में सिंधिया के साथ शामिल हो गया।
उस काल की समस्त राजस्व विवरणिकाओं से मराठा समाहर्ताओं की क्रूर लेकिन उत्कृष्ट प्रक्रिया का विवरण प्राप्त होता है। सन् 1803 से 1818 तक की अवधि में संभवतः देश को सर्वाधिक विनाशकारी दौर से गुजरना पड़ा था।
1818 से 1830 तक एक अंग्रेज रेजिडेंट सर रिचर्ड जेनकिंस नागपुर क्षेत्र का प्रशासन देख रहा था।
सन् 1861 में मध्य प्रान्त के गठन तक नागपुर प्रान्त, जिसमें वर्तमान नागपुर प्रभाग, छिन्दवाड़ा तथा छत्तीसगढ़ शामिल थे, की प्रशासनिक बागडोर भारत सरकार के अधीन आयुक्त के हाथों में थी। उत्तरी जनपदों के सागर तथा यमोह के वे भाग, जो अभी तक पेशवा के अधीन थे, उसके द्वारा 1817 में सौंप दिए गए तथा शेष भाग मांडला, बेतूल, सिवनी तथा नर्मदा घाटी अप्पा साहिब से 1818 में प्राप्त कर लिए गए। सन 1820 में सागर और नर्मदा क्षेत्र नामक यह क्षेत्र गवर्नर जनरल के एक एजेन्ट के प्रशासनाधीन कर दिया गया। सन 1835 में उत्तर पश्चिमी प्रान्त के गठन पर सागर तथा नर्मदा क्षेत्र को उनके साथ जोड़ दिया गया। सन 1842 में बुंदेला विद्रोह हुआ, जो सिविल न्यायालय के प्रतिरोध में सागर जनपद में दो जमींदारों के प्रयासों का परिणाम था। इन गड़बड़ियों के फलस्वरूप सागर तथा नर्मदा क्षेत्र को पुनः गर्वनर जनरल के एजेन्ट के हवाले कर दिया गया। यह व्यवस्था संतोषजनक नहीं पाई गई तथा 1853 में यह क्षेत्र एक बार फिर उत्तर पश्चिमी प्रान्त में मिला दिया गया।
विद्रोह के पश्चात् भारत के मध्य क्षेत्र में दो पृथक क्षेत्र, जो प्रभावी प्रशासन की दृष्टि से किसी भी स्थानीय सरकार के मुख्यालय से बहुत दूर थे, की प्रशासनिक व्यवस्था सुचारू बनाने हेतु एक नए प्रान्त के गठन का इरादा किया गया जो 1861 में कार्यरूप में परिणित हुआ। 1857 में विद्रोह के दौरान उत्तरी जनपदों में भी भारी गड़बड़ियां हुई थीं सागर के मूल रेजिमेंटों ने विद्रोह कर दिया तथा सागर और दमोह अंग्रेजों के हाथ से निकल गए। अंग्रेज सागर नगर तथा किले पर अपना अधिकार बनाए रहे। अगस्त 1857 में जबलपुर रेजीमेंट छावनी से बाहर आ गई, लेकिन काम्पटी से मद्रास द्रूप्स का एक दस्ता शीघ्र वहाँ पहुँच गया तथा जबलपुर और सागर में बागियों के विरुद्ध अनियमित कार्यवाई प्रारंभ कर दी गई। सिवनी, मांडला तथा नर्मदा घाटी में अलग-अलग गड़बड़ी हुई। सर ह्यू रोज 1858 में सागर होकर निकले तथा कहटगढ़ और गढ़ाकोटा के किलों पर अधिकार कर लिया तथा अनेक लड़ाइयाँ में विद्रोहियों को पराजित कर दिया। इसके पश्चात् व्यवस्था तेजी के साथ बहाल हो गई। नागपुर में एक अनियमित अश्वारोही रेजीमेंट तथा उपद्रवी तत्वों द्वारा बगावत कर दी गई, लेकिन शिविर अधिकारियों की सतर्कता से इन्हें परास्त कर दिया गया। चांदा, रायपुर तथा सम्बलपुर में अलग-अलग उपद्रव हुए लेकिन शीघ्र ही दबा दिए गए।

भूगोल

मध्य प्रदेश क्षेत्र दक्षिणी पठार का एक भाग है। यमुना के कछारी बाढ़ मैदान से इसकी उत्तरी सीमा प्रारंभ होती है। इसके पश्चिम में, चम्बल नदी के पार अरावली पहाड़ी श्रृंखला प्रारंभ होती है। पूर्व दिशा में छोटा नागपुर पठार है। इसी प्रकार की भूमि बघेलखंड पठार में भी पाई जाती है। दक्षिण दिशा में ताप्ती नदी के पार प्रायद्वीपीय पठार प्रारंभ हो जाता है। हिमालय पर्वत की तुलना में मध्य प्रदेश में ऊंचाई बहुत कम है। मध्य प्रदेश में भूदृश्य सामान्यतः ऊंचे पठार, नीचे पठार तथा नदी घाटी के मैदानों के रूप में दिखाई पड़ता है। सतपुड़ा पहाड़ियों की ऊंचाई सबसे अधिक (धूपगढ़ चोटी का सूर्यास्त बिन्दु 4339 फुट) है। बघेलखण्ड पठार की ऊंचाई 1152 मीटर है। विंध्याचल श्रृंखला की अधिकतम ऊंचाई 881 मीटर है, जबकि महानदी और नर्मदा में 150 मीटर है। भू-संरचनात्मक प्रभाव के अनुसार मध्य प्रदेश को स्पष्ट प्रभागों में बांटा जा सकता है। चम्बल-सोन नदियों के उत्तर में मध्यम अधित्यका पाई जाती है जो दक्षिणी ट्रेप, विंध्य चट्टान समूह तथा ग्रेनाइट पट्टिाताश्म से निर्मित है। दक्षिण तथा दक्षिणापूर्व में तीखे ढाल वाले कगार पाए जाते हैं जो विंध्याचल, भांडेर तथा कैमूर श्रृंखला के रूप में जाने जाते हैं। इन कगारों के उत्तरी भाग में व्यापक पठार हैं। नर्मदा-सोन अक्ष के दक्षिण में सतपुड़ा पहाड़ियां हैं जो ग्रेनाइट पट्टिताश्म, गोंडवाना चट्टान समूह तथा दक्षिणी ट्रैप से बने हैं। पूर्वी भाग को मैकाल श्रृंखला कहा जाता है।
दोनों प्रभागों के पूर्वी भाग में एक पठार है, जिसके उत्तरी भाग को बघेलखंड पठार, मध्य भाग को छत्तीसगढ़ मैदा (अब यह एक पृथक राज्य छत्तीसगढ़ के अन्तर्गत है) और दक्षिणी भाग को दंडक अरण्य कहा जाता है। प्रथम क्षेत्र गोंडवाना चट्टानों तथा प्री-कैम्ब्रियन ग्रेनाइट से बना है। छत्तीसगढ़ मैदान कडप्पा चट्टानों से निर्मित है, जबकि दण्डकारण्य प्री-कैम्ब्रियन ग्रेनाइट तथा धारवा चट्टानों से बना है। मध्य अधित्यका गंगा घाटी का एक भाग है। चम्बल, बेतवा और केन नदियांबेराय तथा मध्य प्रान्त थे,

भौगोलिक विभाजन

यह राज्य दक्षिणी पठार के उत्तर में अवस्थित है। इसके पूर्व में छोटा पश्चिम में अरावली पहाड़ियां, दक्षिण में ताप्ती नदी की घाटी तथा दक्षिण पश्चिम में महाराष्ट्र का पठार है। इस पठार को उत्तरी भाग में सोन, गंगा तथा यमुना नदियों के मैदान हैं। मध्य प्रदेश को भौतिक आधार पर निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता है। मध्य अधित्यका, सतपुड़ा एवं मैकाल श्रृंखला और पूर्वी अधित्यका । मध्य अधित्यका
नर्मदा तथा सोन घाटियों और अरावली श्रृंखला के मध्य त्रिभुजाकार पठार मध्य अधित्यका कहलाती है। इसमें निम्नलिखित भाग सम्मिलित हैं- (1) विन्ध्य कगार (2) बुंदेलखंड पठार (3) मध्य भारत पठार (4) मालवा पठार (5) नर्मदा और सोन नदियों की घाटियां।
यमुना नदी इस मध्य अधित्यका की उत्तरी सीमा है। इस पठार का अधिकांश हिस्सा नर्मदा और सोन नदियों का उत्तरी भाग है, जो विंध्याचल, भांडेर तथा कैमूर श्रृंखला का हिस्सा है। वास्तव में यह पठार की दक्षिणी सीमा पर एक कगार है। मांडू, जो विंध्याचल के कगार पर स्थित है, से नर्मदा घाटी का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। छोटी धाराओं द्वारा क्षरण के कारण इस कगार में गहरी गुफाएं बन गई हैं। मांडू के निकट कैरों नदी की गुफाएं, बेरार नदी की गुफाएं तथा गडरिया नाले की गुफाएं (भोपाल के दक्षिण में) सुन्दर पर्यटक स्थल हैं। विन्ध्याचल पहाड़ियों की अधिकतम ऊंचाई माध्यमिक औसत समुद्र तल से 881 मीटर है। यह पूर्व दिशा की ओर नीची होती चली गई हैं। भांडेर तथा कैमूरी श्रृंखलाओं की ऊंचाई क्रमशः 752 मीटर तथा 686 मीटर है। गंगा और नर्मदा नदियों की जल विभाजन रेखा इन पहाड़ी श्रृंखलाओं का विभाजन करती है। उत्तर की ओर बहने वाली तथा यमुना से मिलने वाली प्रमुख नदिया चम्बल, बेतवा और केन हैं। इन प्रभागों की प्रमुख विशेषताएं निम्नानुसार हैं :-

विन्ध्य गिरिप्रस्थ

यह एक त्रिभुजाकार पठारी क्षेत्र है। यहां केवल विंध्य समूह पाया जाता है। भांडेर तथा कैमूर गिरिप्रस्थ दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व में पाए जाते हैं। दक्षिण दिशा में
कैमूर श्रृंखला ऊंचाई 650- है। पाक ढलान मार्ग पश्चिम में मध्य दतिया का है। इसके पठार में परत है। कला एवं संस्कृति हैं। महानदी में छोटा नागपुर दक्षिण पश्चिम यमुना नदियों में बांटा जा अधित्यका ।
कैमूर श्रृंखला के समानान्तर सोन नदी बहती है। इस गिरिप्रस्थ की अधिकतम ऊंचाई 650-750 मीटर है जबकि रीवा पठार की अधिकतम ऊंचाई 300-500 मीटर है। पठार की उत्तरी सीमा पर विध्य गिरिप्रस्थ है। रीवा से इलाहाबाद जाते समय ढलान मार्ग है। उत्तरी गिरिप्रस्थ पन्ना श्रृंखला के रूप में जारी रहता है जो दक्षिण पश्चिम में सागर तक विस्तृत है।
मध्य अधित्यका का उत्तरी भाग बुंदेलखंड पठार है, जिसमें छतरपुर, टीकमगढ़, दतिया का अधिकांश हिस्सा और शिवपुरी एवं गुना जनपदों का कुछ हिस्सा शामिल है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के ललितपुर, झासी, बांदा तथा जालौन जनपद इस पठार में सम्मिलित हैं। यह पठार पुरानी चट्टानों के बुंदेलखंड पट्टिताश्म की क्षरित परत है। यमुना नदी इसकी सीमा निर्धारण करती है तथा अन्य हिस्सों में विन्ध्याचल समूह की चट्टानें पाई जाती हैं। पन्ना श्रृंखला, बीजावर श्रृंखला, नरवर गिरिप्रस्थ और चंदेरी पार्ट एक अर्द्धचन्द्राकार में बुदेलखंड पठार को तीन ओर से घेरे हुए हैं। मध्य पठार में औसत ऊंचाई 300-450 मीटर है जबकि अग्रवर्ती भाग में मध्य समुद्र तल से 500-550 मीटर ऊंचाई है।

मध्य पठार

मध्य पठार बुंदेलखंड पठार के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह क्षेत्र विंध्य चट्टान समूहों से निर्मित है। पश्चिम में अरावली श्रृंखला एक अग्रवर्ती भ्रंश के रूप में इसकी सीमा निर्धारित करती है। खिचीवाड़ा, शिवपुरी, मुरैना, ग्वालियर तथा कौन्तेल पश्चिम दिशा में इस पठार के प्रमुख भाग है। चम्बल घाटी इस पठार का एक प्रमुख भाग है जो कछारी मिट्टी के जमाव से बनी है। उच्च पठार तथा नीची घाटी क्रमशः 450 मीटर तथा 150-450 मीटर के दायरे में है।

मालवा पठार

यह मध्य अधित्यका का पश्चिमी भाग है। नर्मदा नदी के दक्षिण में दक्षिणी ट्रैप लैण्ड को मालवा पठार कहा जाता है। इसकी पूर्वी सीमा पर सागर है। इस पश्चिमी भाग में सतह पर विन्ध्य चट्टानें क्षरण के प्रभाव रूप में देखी जा सकती हैं। इस पठार की दक्षिणी सीमा पर विन्ध्य श्रृंखला है। उत्तर में यह पठार गुना तक फैला है। इस पठार का निर्माण ज्वालामुखी विस्फोट के लावा के सघनीकरण से हुआ है। इसलिए यहां की मिट्टी काली है, जो कृषि के लिए अत्यंत लाभदायक है। उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में काली मिट्टी की मोटी परत जमा है।

नर्मदा-सोन पाटी

यह नदी घाटी राज्य का सबसे लम्बा हिस्सा है जो औसत समुद्रतल से मीटर की ऊंचाई पर है। यह एक संकीर्ण घाटी है जो पश्चिम से उत्तर-पूर्व दि फैली है। यह एक भ्रंश घाटी है। इसका अधिकांश भाग सोन घाटी के दक्षिण। गिरिप्रस्थ के रूप में है। नर्मदा घाटी में मैदानी भाग भी मौजूद हैं जहां काली मिट्टी पाई जाती है। नदी के समीपवर्ती क्षेत्र में कछारी मिट्टी पाई जाती है। पट्टी में लाल तथा मखरला मिट्टी पाई जाती है।

अर्थव्यवस्था

मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है। राज्य की कुल जनसं का 74.73 प्रतिशत भाग ग्रामीण क्षेत्रों में बसा है। राज्य की लगभग 49 प्रतिशत भूमि खेती करने योग्य है। राज्य की प्रमुख फसलें गेहूँ, चावल, ज्वार, कपार तिलहन, दाल, सोयाबीन, चना तथा अलसी हैं। कुल खाद्यान्न उत्पादन में लगभग दस मिलियन मीट्रिक टन की गिरावट दर्ज की गई है।
हाल में राज्य ने हाई-टेक उद्योगों जैसे पेट्रो केमिकल्स, इलेक्ट्रानिक्स, दूरसंचार आटोमोबाइल इत्यादि के क्षेत्र में प्रवेश किया है। मध्य प्रदेश में दूरसंचार क्षेत्र की जरूरतों के लिए ऑप्टिकल फाइबर का उत्पादन किया जा रहा है। इंदौर के निकट पीतमपुर में बड़ी संख्या में आटोमोबाइल उद्योग में स्थापित किए गए हैं। राज्य में मौजूद सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख उद्योगों में भारत हैवी इलेक्ट्रीकल्स लिमिटेड, भोपाल, सिक्योरिटी पेपर मिल, होशंगाबाद, बैंक नोट प्रेस, देवास, न्यूजप्रिंट फैक्ट्री, नेपानगर तथा एल्कालाइड फैक्ट्री, नीमच शामिल हैं। वर्ष 1999-2000 के दौरान हैण्डलूम क्षेत्र में 81.13 मिलियन मीटर कपड़ा तथा पावरलूम क्षेत्र में 131.59 मिलियन मोटर कपड़ा का उत्पादन किया गया था। सन 1998-99 में 3.35 मिलियन टन बिक्री योग्य इस्पात और 91.8 हजार टन अल्युमीनियम का उत्पादन हुआ। सीमेंट का उत्पादन 11.24 मिलियन टन था जबकि न्यूजप्रिंट उत्पादन का आंकड़ा 58.4 हजार टन था। पीतमपुरा में एक एयर कार्गो काम्प्लेक्स, इण्डोजर्मन टूल रूप तथा इनलैण्ड कैटेनर डिपो स्थापित किया जा रहा है। भारत सरकार ने इन्दौर में विशेष आर्थिक क्षेत्र (इस ई जैड) स्थापित करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। व्यापक आर्थिक विकास नीति से क्रियान्वन द्वारा एफ डी आई को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
मध्य प्रदेश खनिज उत्पादन के मामले में देश का अग्रणी राज्य है। कोयला, बाक्साइड, लौह-अयस्क, मैंगनीज-अयस्क, रॉक कस्फेट, डोलोमाइट, तम्र-अवस्क चूना पत्थर का खनन वृहद स्तर पर किया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2000-01 के दौरान 23,300 हजार टन से अधिक चूना पत्थर, 315 हजार टन बाक्साइट 130 हजार टन लौह-अयस्क, 259 हजार टन डोलोमाइट तथा 156.9 हजार कैरट हीरों का उत्पादन किया गया था। मध्य प्रदेश अपने पारम्परिक हस्तशिल्प और हैण्डलूम कपड़े के उत्पादन (क्रमशः चंदेरी और माहेश्वर में) के लिए विख्यात है।
वर्ष 2000-01 में 4.13 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध थी। विभिन्न फसलों का सिंचित क्षेत्र 26 प्रतिशत कम हुआ है। वर्ष 2000-01 में राज्य की कुल संस्थापित विद्युत जनन क्षमता 2900 मेगावाट थी। राज्य में आठ से अधिक हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर स्टेशन हैं जिनकी संस्थापित क्षमता 747.5 मेगावाट है। राज्य के कुल 51,906 में से 50,271 से अधिक गांवों तक बिजली की सुविधा उपलब्ध करा दी गई है। राज्य सरकार ने 1000 मेगवाट के इन्दिरा सागर हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट तथा 520 मेगावाट के ओंकारेश्वर हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के निष्पादन हेतु नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कार्पोरेशन के साथ एक संयुक्त उद्यम (नर्मदा हाइड्रोइलेक्ट्रिक डेवलपमेंट कार्पोरेशन) का गठन किया है।
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