Gulzar Saab : Hazaar Rahen Mud Ke Dekheen

गुलज़ार एक ख़ानाबदोश किरदार हैं, जो थोड़ी दूर तक नज़्मों का हाथ पकड़े हुए चलते हैं और अचानक अफ़सानों की मंज़रनिगारी में चले जाते हैं। फ़िल्मों के लिए गीत लिखते हुए कब डायलॉग की दुनिया में उतर जाते हैं, पता ही नहीं चलता। वे शायरी की ज़मीन से फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखते हैं, तो अदब की दुनिया से क़िस्से लेकर फ़िल्में बनाते हैं।                             यतीन्द्र मिश्र

यतीन्द्र मिश्र

हिन्दी कवि, सम्पादक, संगीत और सिनेमा अध्येता हैं। अब तक चार कविता-संग्रह- यदा-कदा, अयोध्या तथा अन्य कविताएँ, ड्योढ़ी पर आलाप और विभास; शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी पर गिरिजा, 

नृत्यांगना सोनल मानसिंह से संवाद पर देवप्रिया, शहनाई उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ के जीवन व संगीत पर सुर की बारादरी तथा पार्श्वगायिका लता मंगेशकर की संगीत यात्रा पर लता सुर-गाथा प्रकाशित। प्रदर्शनकारी कलाओं पर विस्मय का बखान, कन्नड़ शैव कवयित्री अक्क महादेवी के वचनों का हिन्दी में पुनर्लेखन भैरवी, हिन्दी सिनेमा के सौ वर्षों के संगीत पर हमसफ़र, अयोध्या के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अध्ययन पर आधारित अयोध्या: परम्परा, संस्कृति, विरासत विशेष चर्चित फिल्म निर्देशक व गीतकार गुलज़ार की कविताओं और गीतों के चयन क्रमशः यार जुलाहे तथा मीलों से दिन, अवध संस्कृति पर आधारित गजेटियर शहरनामा : फ़ैज़ाबाद तथा ग़ज़ल गायिका बेगम अख्तर पर आधारित अतरी सम्पादित पुस्तकें गिरिजा, विभास, अतरी तथा लता : सुर गाथा का अंग्रेज़ी, यार जुलाहे और मीलों से दिन का उर्दू तथा अयोध्या श्रृंखला कविताओं का जर्मन अनुवाद प्रकाशित ।

राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार ‘स्वर्ण कमल’, मामी फ़िल्म पुरस्कार, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार, रज़ा सम्मान, भारतीय भाषा परिषद युवा पुरस्कार, स्पन्दन ललित कला सम्मान, द्वारका प्रसाद अग्रवाल भास्कर युवा पुरस्कार, एच.के. त्रिवेदी स्मृति युवा पत्रकारिता पुरस्कार, महाराणा मेवाड़ सम्मान, हेमन्त स्मृति कविता पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, शमशेर सम्मान, कलिंगा बुक एवॉर्ड से सम्मानित भारतीय ज्ञानपीठ फेलोशिप, संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार की कनिष्ठ शोधवृत्ति और सराय, नयी दिल्ली की स्वतन्त्र शोधवृत्ति प्राप्त । दूरदर्शन (प्रसार भारती) के कला-संस्कृति के चैनल डी. डी. भारती के सलाहकार के रूप में कार्यरत (2014-2016) साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों हेतु भारत के प्रमुख नगरों समेत अमेरिका, इंग्लैंड, मॉरीशस और अबू धाबी की यात्राएं सर्वश्रेष्ठ सिनेमा लेखन के लिए 69वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार ज्यूरी के चेयरमैन, 66वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार ज्यूरी के सदस्य, 32वें इंटरनेशनल फिल्म फ़ेस्टिवल ऑफ़ इंडिया, गोवा की ज्यूरी के सदस्य तथा उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार की निर्णायक समिति के सदस्य रहे। अयोध्या में निवास।

अनगिनत नज़्मों, कविताओं, ग़ज़लों और फ़िल्म गीतों की समृद्ध दुनिया है गुलज़ार के यहाँ, जो अपना सूफ़ियाना रंग लिये हुए शायर का जीवन-दर्शन व्यक्त करती है। इस अभिव्यक्ति में जहाँ एक ओर हमें कवि के अन्तर्मन की महीन बुनावट की जानकारी मिलती है, वहीं दूसरी ओर सूफ़ियाना रंगत लिये हुए लगभग निर्गुण कवियों की बोली-बानी के क़रीब पहुँचने वाली उनकी आवाज़ या कविता का स्थायी फक्कड़ स्वभाव हमें एकबारगी उदासी में तब्दील होता हुआ नज़र आता है। इस अर्थ में गुलज़ार की कविता प्रेम में विरह, जीवन में विराग, रिश्तों में बढ़ती हुई दूरी और हमारे समय में अधिकांश चीज़ों के संवेदनहीन होते जाने की पड़ताल की कविता है। इस यात्रा में ऐसे कई सीमान्त बनते हैं, जहाँ हम गुलज़ार की क़लम को उनके सबसे व्यक्तिगत पलों में पकड़ने का जतन करते हैं।

एक पुरकशिश आवाज़, समय को आईना बनाकर पढ़ने वाली जद्दोजहद, कविताओं की शक्ल में उतरी हुई सहल पर झुकी हुई प्रार्थना… उनका सम्मोहन, उनका जादू, उनकी सादगी और उनका मिज़ाज ये सब पकड़ना छोटे बच्चे के हाथों

तितली पकड़ने जैसा है। उनके जीवन-लेखन-सिनेमा की यात्रा दरअसल फूलों के रास्ते से होकर गुज़री यात्रा है, जिसमें फैली खुशबू ने जाने कितनी रातों को रतजगों में बदल दिया है। गुलज़ार की ज़िन्दगी के सफरनामे के ये रतजगे उनके लाखों प्रशंसकों के हैं। आइए, ऐसे अदीब की ज़िन्दगी के पन्नों में उतरते हैं, कुछ सफ़हे पलटते हैं, कुछ बातें सुनते हैं। अपने दौर को हम इस तरह भी साहित्य और सिनेमा के एक सुख़नवर नज़र से देखते हैं

गुरुग्रन्थ साहिब, कबीर, मीराबाई, कुल्लेशाह, अमीर खुसरो, रानी रूपमती मीर तकी मीर इब्ने ईशा, शेक्सपियर, जॉन कीट्स, अन्तोन चेखव, अलेक्सांद्र पुश्किन, रॉबर्ट फास्ट, नारायण प्रसाद ‘बेताब’, ख़लील जिब्रान, पाब्लो नेरुदा, फ़ैज़ अहमद फैज़, ऑक्टोवियो पॉज़, काज़ी नजरूल इस्लाम, जॉन बर्जर, फ्रांज काफ्का, रवीन्द्रनाथ टैगोर, रायनर मारिया रिल्के, इस्मत चुगताई, लता मंगेशकर, कुलदीप नैयर, शैलेन्द्र, साहिर लुधियानवी इकबाल, अली सरदार जाफरी, शंकर शेष, समरेश बसु, अमृता प्रीतम, पण्डित रविशंकर, मीनाकुमारी, राजकुमार मैत्रा, मेरी ओलिवर, शमशेर बहादुर सिंह, नागार्जुन, मार्टिन फ्रीमैन, मार्क गेटिस, अकीरा कुरोसावा, इंग्मार बर्गमैन, एरिक सीगत, सुखदेव, बेगम अख्तर, जोगिन्दर पाल, कुँवर नारायण, केदारनाथ सिंह, महाश्वेता देवी, सोनल मानसिंह, बॉब डिलेन, पॉल विलेमेन, आशीष राजाध्यक्ष, कमलेश्वर, अमीन सयानी, नसरीन मुन्नी कबीर, पं. सत्यशील देशपाण्डे, गोपी गजवानी, रीता गांगुली, नसीरुद्दीन शाह, सत्या सरन, सलीम आरिफ, पवन झा, सवा महमूद बशीर, सुनयना काचरू, पवन के. वर्मा, मैथिली राव, यशवंत व्यास, अनिरुद्ध भट्टाचार्जी, बालाजी विट्ठल, कौसर मुनीर सेबल चटर्जी, विशाल भारद्वाज तथा मेघना कला-श्रम से सृजित जीवन और उसके साथ खुद के किरदार के लिए तय की गयी जवाबदेही, ज़िम्मेदारी और अनुशासन को लिखना आसान काम नहीं है। आप जितना ही गुलज़ार होने के आशय को पकड़ने की कोशिश करते हैं, वह दूसरे ही क्षण अलग किरदारों में ढलकर आँख से ओझल हुआ जाता है। कभी शायर मन को टटोलना चाहें, तो उनका किस्सागो आगे आ जाता है। कभी गीतकार की कलम की नाजुकी को सहलाना चाहें, तो एक प्रतिबद्ध फिल्मकार आड़े आता है, जिसने समय को तराशते हुए कुछ बेहतरीन फिल्में बनायीं। इन सब से अलग, कई परतों में लिपटी हुई उनकी ज़िन्दगी की चादर पर कभी एक डायलॉग राइटर आकर बैठ जाता है, तो कभी बच्चों का बचपन लौटाने वाला ऐसा दार्शनिक कवि, जो कविता को गेंद बनाकर खेलने का बहाना देता है। कहने का लब्बोलुआब यह है कि गुलज़ार साहब के जीवन के पन्नों को पढ़ते हुए, उनकी शायरी का मर्म तलाशने के लिए कविताओं और नज़्मों से गुज़रते हुए, फ़िल्म गीतों को उनके मानी के साथ पकड़ने के वास्ते और निर्देशित फ़िल्मों में समाज का चेहरा देखने के लिए जो कुछ भी मैं समेटना चाह रहा था, उसका जैसा भी दस्तावेज़ बन पड़ा है, पाठकों के सामने है।

आभार

जिन विद्वानों और मित्रों के परामर्श से इस पुस्तक में परिष्कार आया, उनके प्रति हृदय से आभारी हूँ। उन वरिष्ठ मूर्धन्यों, साहित्य और कला अनुरागियों का धन्यवाद व्यक्त करना चाहता हूँ, जिनके सहयोग के बगैर यह किताब सम्भव नहीं थी।

इस आयोजन को सफल बनाने में जिन मित्रों के शुरुआत से ही सुझाव मिलते रहे, स्क्रिप्ट को पढ़कर उसे दुरुस्त बनाने में तथ्यों और घटनाओं को सहेजने के ब्यौरे सुलभ हुए, उनमें गुलज़ार साहब के समग्र काम को थाती की तरह सहेजने वाले आत्मीय मित्र पवन झा, लेखक और रंगकर्मी सलीम आरिफ भाई, फ़िल्म संगीत के गहरे जानकार भाई यूनुस ख़ान, कहानीकार और पत्रकार मित्र नरेन्द्र सैनी तथा कहानीकार अनुलता राज नायर को आदर से याद करता हूँ। प्रख्यात फिल्मकार प्रकाश झा और विशाल भारद्वाज, अभिनेता यशपाल शर्मा का शुक्रिया, जिनसे गुलज़ार साहब के सन्दर्भ में हुई बातचीत ने किताब को इस कलेवर में प्रस्तुत करने का सौजन्य दिया। किताब के लिखे जाने के दौरान विगत वर्षों में जिन दो विभूतियों से वार्तालाप के चलते अनगिनत दुर्लभ संस्मरण मिले, दुर्भाग्य से अब ये इस दुनिया में नहीं हैं। पूरे आदर के साथ, महान पार्श्वगायिका लता मंगेशकर जी, पार्श्वगायक भूपेन्द्र के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करता हूँ।

 

अपने उन सभी दोस्तों का आत्मीय ढंग से धन्यवाद व्यक्त करता हूँ, जिनका सहयोग और सुझाव हमेशा ही कुछ बेहतर रचने की प्रेरणा देते हैं। इनमें से अधिकांश ने अपने-अपने ढंग से किताब के कुछ अंशों को पढ़कर मुझे ज़रूरी संशोधन बताये। 

कुछ मित्रों ने दुर्लभ सामग्री, फ़िल्मी पत्र-पत्रिकाओं की पुरानी फाइलें और गुलज़ार के फ़िल्मी सफ़रनामे के दौरान जारी किये गये साक्षात्कार उपलब्ध करवाये।उन सबके प्रति अनुगृहीत अनुभव करता हूँ। सभी के नामोल्लेख के बिना यह काम मेरे लिए कठिन साधना थी। ये हैं- सर्वश्री सुरेश वाडकर, प्रसून जोशी, इरशाद कामिल, मोइत्रा, गोपी गजवानी, अनन्त विजय, सत्या सरन, लुबना सलीम, पीयूष दईया, नमिता गोखले, संजीव पालीवाल, इकबाल रिज़वी, मधु बी. जोशी, सुकृता पॉल कुमार, मोहित कटारिया, मानव प्रकाश और इन्द्रजीत सिंह… गुलज़ार के गीतों में आये हुए संगीत पक्ष को शास्त्रीय ढंग और पश्चिमी धुनों के धरातल पर समझने के लिए जिन संगीत विद्वानों, कलाकारों ने मदद की है, उनमें मालिनी अवस्वी शेखर सेन, सुनन्दा शर्मा और अजीत सारथी का विशेष सहयोग रहा। इन सबके प्रति कृतज्ञ हूँ ।

गुलज़ार साहब के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी सिनेमा के इतिहास और विकास यात्रा को समझने की दृष्टि देने वाले अनेक दस्तावेज़ मुझे जिन संस्थानों ने उपलब्ध कराये हैं, सभी के प्रति आभारी हूँ। इनमें विशेष रूप से नेशनल फिल्म आकाइव ऑफ इंडिया (पुणे), विविध भारती (मुम्बई), नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी, तीन मूर्ति भवन (नयी दिल्ली), आकाशवाणी अभिलेखागार (नयी दिल्ली), आरुषि इंडिया (भोपाल) तथा सा रे गा मा आर्काइव- एच.एम.वी. (कोलकाता) का स्मरण करना चाहूँगा ।

 

किताब को उर्दू लिपि में गुलज़ार साहब को पढ़ने के लिए उपलब्ध करवाने के वास्ते मित्र शुऐब शाहिद का विशेष धन्यवाद । उर्दू से हिन्दी और हिन्दी से उर्दू में इस किताब के पाठ का तर्जुमा करके मेरे और गुलज़ार साहब के बीच समन्वय की डोर बनी हुई, गुलज़ार साहब की सेक्रेटरी सुश्री फरहाना का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ, जिनका पिछले दो दशकों का साथ हमेशा हिम्मत देने वाला रहा। मेरे काम को पारिवारिक स्तर पर मेरी बहनों ने हमेशा ही अपने दोनों हाथों से थामा है।

छोटी बहन शुभांगी का जितना भी धन्यवाद करूँ, कम है। मेरे साथ सालों तक रात-रात भर जागकर गुलज़ार साहब की स्क्रिप्ट के लिखे जाने, पढ़ने और सम्पादन में उसका योगदान अप्रतिम है। बहन मंजरी का भी विशेष धन्यवाद, जिसने समय-समय पर अपनी टिप्पणियों से इसमें कुछ सकारात्मक परिवर्तन कराये। किताब की पटकथा को सँवारने में अश्विनी शुक्ल, अजय पाठक और मित्रों रोहित शर्मा व आशुतोष शुक्ल का आभारी हूँ। किताब के आकल्पन और सज्जा में प्रयोग में लाये गये अधिकतर छायाचित्र हस्तलिखित पन्नों के दस्तावेज आदरणीय गुलज़ार साहब के व्यक्तिगत संग्रह, विवेक रानाडे तथा नीरव घाटे से मुझे प्राप्त हुए हैं। इनके अलावा प्रयोग में लायी गयी अधिकांश सांग बुकलेट्स और फ़िल्म पोस्टर मेरे निजी संग्रह तथा मित्र सुमंत बत्रा और उनकी संस्था ‘सिनेमाज़ी’ से प्राप्त हुए हैं। सभी के प्रति आभारी हूँ                                 

आभार मित्र अरुण माहेश्वरी और उनकी पुत्री अदिति माहेश्वरी – गोयल का, जिनका भरोसा मेरे लेखन में हमेशा से रहा है।आभार मित्र अरुण माहेश्वरी और उनकी पुत्री अदिति माहेश्वरी – गोयल का, जिनका भरोसा मेरे लेखन में हमेशा से रहा है।

सभी के प्रति धन्यवाद, आदर

   -यतीन्द्र मिश्र

चौदह बरस लगे मुझे ‘अयोध्या’ पहुँचने में।

‘अयोध्या’ के राजकुँवर, ‘यतीन्द्र मिश्र’ मेरा इण्टरव्यू ले रहे थे।

पता नहीं क्या-क्या कहा मैंने ।

लेकिन सारी ख़ूबी उनके सवालों की है-

मेरे जवाबों की नहीं ।

यतीन्द्र ही की ख़ूबी थी कि वो मेरी ज़मीन को

इतनी गहराई तक खोद पाये।

मुझे लगता था शायद तेल निकल आये,

तो कुछ हासिल हो ।

लेकिन हो सकता है सिर्फ़ मिट्टी हाथ आयी

या पानी का कुँआ निकला।

इसका फ़ैसला अब ‘अरुण माहेश्वरी’ करेंगे,

या आप! किताब पढ़ कर ।

कुछ हीरे, पन्ने अगर यतीन्द्र के हाथ आये हैं तो

उनकी फ़राख़दिली है कि वो आप सब के साथ बाँट रहे हैं!

                                                                                                                                              – गुलज़ार

अनुक्रम

  • कुन्दील में जलती रोशनी
  • जीवन, रचनाकर्म और सिनेमा सफ़र पर विचार हज़ार राहें मुड़ के देखीं
  • गुलज़ार से संवाद
  • थोड़ा सा बादल थोड़ा सा पानी
  • सम्मान एवं उपलब्धियाँ
  • इस मोड़ से जाते हैं
  • ग्रन्थ- सन्दर्भ
  • नाम सन्दर्भ
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