
रामनवमी राम का जन्मदिन नहीं, जन्मोत्सव है। राम के जन्म का उछाह राम को अपने बीच सदा अनुभव करने वाला साधारण जन मानता है। राम को या किसी को भी जो लोग भगवान नहीं स्वीकार करना चाहते हैं, वे भी इस उत्सव में सहभागी हो जाते हैं, क्योंकि राम सबके हैं, सबके लिए हैं। यह तिथि इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि गोस्वामी तुलसीदास ने इसी दिन अपनी अमरकृति ‘रामचरितमानस’ का शुभारम्भ उसी अयोध्या में किया, जहाँ राम का जन्म हुआ और उस जन्म को हम घर-घर रामनवमी के लिए घटित होती भावना का विषय बनाते हैं।गोस्वामीजी ने किसी और रचना की रचना-तिथि नहीं दी, केवल ‘मानस’
की रचना-तिथि दी। इसका गूढ़ अभिप्राय है। उन्होंने रचना-समाप्ति की तिथि नहीं दी, अनुमानतः दो वर्ष लगे होंगे। अयोध्या, चित्रकूट और काशी तीन स्थानों में अलग-अलग कालावधियों में बैठकर ‘मानस’ लिखा गया । ‘रामचरितमानस’ में भी प्रश्न ज़रूर प्रारम्भ में पूछा गया कि राम अयोध्यावासियों समेत किस प्रकार स्वर्ग गये, पर इसका उत्तर तुलसीदास जैसे कुशल काव्यशिल्पी ने नहीं दिया। इसका भी कोई विशेष अभिप्राय है।
मैं समझता हूँ कि अभिप्राय यही होगा कि तुलसी के राम यहीं बसे रहते हैं, वे जन्म लेते हैं और धरती पर रहने वाले मनुष्यों के प्रेम से खिंचे यहीं रहते हैं।

दयानिधि मिश्र
जन्म : 01 अक्टूबर, 1948, गोरखपुर। गोरखपुर विश्वविद्यालय सहित। विभिन्न महाविद्यालयों में 8 वर्षों का अध्यापन-अनुभव। भारतीय पुलिस सेवा से अवकाश प्राप्त। सचिव, विद्याश्री न्यास एवं अज्ञेय भारतीय साहित्य संस्थान न्यास समिति। अध्यक्ष, श्री भारत धर्म महामण्डल । न्यासी, वेणी माधव ट्रस्ट । आचार्य विद्यानिवास मिश्र की स्मृति में स्थापित विद्याश्री न्यास के तत्वावधान में राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय
संगोष्ठियों, व्याख्यानों, सम्मान-समारोहों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का नियमित आयोजन। विद्यानिवास मिश्र स्मृति ग्रन्थमाला के अन्तर्गत अब तक 10 पुस्तकों के अतिरिक्त ‘भूमध्यसागर से गंगातट तक’, ‘क्या पूरब क्या पश्चिम’, ‘अज्ञेय मौन की अभिव्यंजना’, ‘धर्म की अवधारणा’ एवं ‘विद्यानिवास मिश्र संचयिता’ का सम्पादन।
सम्मान : सराहनीय सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक (1994), हिन्दुस्तान समाचार का भाषा सम्मान (2014), सेवक स्मृति साहित्य श्री सम्मान (2016), वासुदेव द्विवेदी सम्मान (2017)।
सम्प्रति : विद्यानिवास मिश्र रचनावली (21 खण्डों में) का सम्पादन । वाराणसी में निवास।
विद्यानिवास मिश्र (1926-2005)
हिन्दी और संस्कृत के अग्रणी विद्वान, प्रख्यात निबन्धकार, भाषाविद् और चिन्तक थे। आपका जन्म गोरखपुर जिले के ‘पकड़डीहा’ ग्राम में हुआ। प्रारम्भ में सरकारी पदों पर रहे। तत्पश्चात् गोरखपुर विश्वविद्यालय, आगरा विश्वविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ और फिर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, आचार्य, निदेशक, अतिथि आचार्य और कुलपति के पदों को सुशोभित किया।
